TESTIMONIALS
जब आदि मानव जंगलों में रहता था तो शिकार या भोजन मिलने की खुशी में गीत गाता था, नृत्य करता था, अपने समूह के साथ उत्सव मानता था और उसी खुशी का इज़हार गुफाओं में चित्रकारी, पेंटिंग के रूप में आज हम देख पाते हैं। लेकिन आज हमें भोजन क्या कुछ भी मिल जाये तब भी ध्यान उस मिलने वाली वस्तु में ना होकर उनमें अटका रहता है, जो अभी नहीं मिली या जिन्हें हासिल करना शेष है। खुशी, संतुष्टि, उत्सव, उल्लास गायब सा होता गया। इस वर्कशॉप से मैंने सीखा की कैसे हमने सिर्फ विकास या प्रगति के गीत गाना सीखे हैं। इतना ही नहीं हम तथाकथित विकास की अंधी दौड़ में कब शामिल हो गए और उसका समर्थन करने के साथ साथ उसके लिए राह आसान करने लगे हमें पता ही नहीं चला। गांव को जानने के माध्यम से स्वयं को जानने के ये दिन मेरी ज़िंदगी के अद्भुत दिनों में शुमार हो गए है।
वीरंदर सरोहा, सामाजिक कार्यकर्ता, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
After a long time, I have come across someone who has not influenced us but has guided us to explore truth ourselves.
Kamlesh Chandra, Founder Director, Shana International School, Bikaner, Rajasthan
इन कार्यशाला में हमने ना केवल गाँव को जाना बल्कि गाँव के माध्यम से खुद को जानने की कोशिश की । इस दौरान हमने कुछ ऐसी गतिविधियां की जिसने गावों के इतिहास और उनमें हो रहे बदलावों की एक तस्वीर हमारे सामने खड़ी कर दी। अब तक जिन तरीकों से औऱ जो हमे पढ़ाया जाता है वो सब हमारे दिमाग में इस तरीके से जगह बना लेता है कि उस से बाहर सोचना या समझना हम भूल ही जाते हैं । वहाँ मैंने अपने आस पास की हर एक चीज़ को एक नए नजरिये से देखने और समझने की कोशिश की ।
मीनाक्षी गांधी, अध्यापक, गणौर, हरियाणा
When ever we listen the word “RURAL DEVELOPMENT” it strikes what the Government has done or doing for rural development, and abruptly we start arguing upon the plans made by government and how it is being executed , whether it was good or not and so on. But after this dialogue what I have learnt is, we as a whole cannot blame the government for not making changes or developing the rural living of the country , if we our self don’t tend to change our mentality or idea towards the development and rural living no one can help us out. From the very beginning in our society there was an existence of “INDIVIDUAL INDEPENDENCY” and this is what we fought for but when it comes to a revolution we suddenly depend on someone that “WE NEED A HEAD” or with a thinking “WHAT CAN I AS AN INDIVIDUAL DO”. So, for any development we should stand as an individual and make awareness that yes we can do something in a proper way without being dependent on someone.
Surabhi Das, Student at SRM University, Chennai